LA MUSIQUE | |
* | |
غالياً ما تحملني الموسيقا كما يحملني موج البحر | |
نحو نجمي الشاحب | |
وتحت سقف من الضباب أو في أثير واسع | |
أبحر | |
فأتسلق متن الأمواج المتراكمة التي يحجبها عني الليل | |
وصدري إلى الأمام ورئتاي منفوختان | |
كأنهما من قماش | |
إني لأشعر في داخلي بكل انفعالات | |
مركب مشرف على الغرق | |
وأشعر بالريح المواتية وبالعاصفة واختلاجاتها | |
تهدهدني فوق اللجة المترامية | |
وأحياناً أخرى أسمعها هادئة ملساء | |
كأنها مرآة يأسي الكبيرة | |
* | |
ترجمها عن الفرنسية | |
حنّا الطيّار | |
جورجيت الطيّار |
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احساس مجروح
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الأحد، 24 أكتوبر 2010
شارل بودلير / Charles Baudelaire >> الموسيقا
شارل بودلير / Charles Baudelaire >> الغليون
LA PIPE | |
* | |
أنا غليون لأحد الكتّاب | |
فمن يتأمل سحنتي الحبشية | |
يدرك أن صاحبي مُكثرٌ من التدخين | |
فعندما يغمره الألم | |
يطلق الدخان كمدخنة كوخ | |
يُعَدّ في مطبخه الطعام | |
انتظاراً لعودة صاحبه الفلاح | |
إنب أعانق وأهدهد روحه | |
في شبكة من الدخان الأزرق | |
الذي يطلقه فمي الملتهب | |
وأصنع بلسماً قوياً يسحر قلبه | |
ويشفي فكره من التعب | |
* | |
ترجمها عن الفرنسية | |
حنّا الطيّار | |
جورجيت الطيّار |
شارل بودلير / Charles Baudelaire >> البوم
LES HIBOUX | |
* | |
تحت الأشجار السود تجثم طيور البوم | |
مختبئات في صفوف منتظمة | |
شاخصات بعيونهن الحُمر | |
كأنها آلهة غريبة. إنهن يتأملن | |
وبلا حراك يمكثن حتى الساعة الكئيبة | |
التي يوطد فيها الظلام سيطرته | |
طارداً أشعة الشمس المنحرفة | |
موقفهنّ هذا يعلم الحكيم أن يخشى | |
في هذا العالم | |
الحركة والزحام | |
فالإنسان الذي يسكره خيال عابر | |
يحمل معه دائماً عقابه | |
الذي يكمن في إرادة تغيير مكانه | |
* | |
ترجمها عن الفرنسية | |
حنّا الطيّار | |
جورجيت الطيّار |
شارل بودلير / Charles Baudelaire >> أحزان القمر
TRISTESSES DE LA LUNE | |
* | |
يحلم القمر بمزيد من الاسترخاء هذا المساء | |
كأنه حسناء تتكئ على وسائدها | |
تداعب بيد ذاهلة خفيفة حوافّ نهديها | |
قبل أن يستولي عليها النوم | |
وتستسلم متهالكة لانتشاءات طويلة | |
كأنها على متن حريري لركام ثلجي هشّ | |
وعيناها تجولان على الرُّؤى البيض | |
التي تتصاعد كأنها الأزهار في زرقة السماء | |
وعندما تدع دمعة خفيفة تسقط احياناً | |
على هذا المصباح وهي في مللها الكسول | |
يتناولها شاعر تقي عدوّ للرقاد | |
في راحة يده. هذه الدمعة الشاحبة | |
ذات الانعكاسات القزحية | |
كأنها قطعة من حجر كريم | |
ويخفيها في قلبه بعيداً عن عيون | |
الشمس | |
* | |
ترجمها عن الفرنسية | |
حنّا الطيّار | |
جورجيت الطيّار |
شارل بودلير / Charles Baudelaire >> نشيد الخريف
SONNET D'AUTOMNE | |
* | |
عيناك الصافيتان كالكريستال تقولان لي | |
أيها العاشق الغريب الأطوار | |
ما هي مزيتي في نظرك ؟ | |
كوني فاتنة والزمي الصمت | |
فقلبي الذي يثيره كل شيء | |
ما خلا براءة الوحش القديم | |
لا يود إطلاعك على سرّه الجهنمي | |
ولا على أسطورته السوداء المكتوبة باللهب | |
أيتها المرأة التي تدعوني يداها المهدهدتان للنوم | |
إني أكره الوجد ويوجعني الفكر | |
دعينا نتحاب في هدوء | |
فالحب في كوخه المظلم الآمن | |
يوتر قوسه المشؤومة | |
وأنا عليم بذخائر مسالحه القديمة | |
إنها الجريمة والعرب والجنون ـ يا زهرتي الشاحبة | |
ألست مثلي شمساً خريفية | |
يا لؤلؤتي التي لا أبرد ولا أشدّ منها بياضاً | |
* | |
ترجمها عن الفرنسية | |
حنّا الطيّار | |
جورجيت الطيّار |
شارل بودلير / Charles Baudelaire >> الغريب
قل لي , أيّها الرجل المُحيّر , من تحب أكثر , | |
أباك , أمّك , أختك أم أخاك ؟ | |
ليس لي أب أو أم أو أخت أو أخ . | |
أصدقاءك ؟ | |
ها أنت ترطن بشيء مازلت أجهله . | |
وطنك ؟ | |
لا أدري أين هو . | |
الجمال ؟ | |
أحبّه عن طيب خاطر لو كان معبودة خالدة . | |
الذهب ؟ | |
أمقته بشدّة . | |
حسن ! ماذا تحب أيّها الوحيد الفريد ؟ | |
أحب الغيوم ..... قطع السحاب ..... هناك ..... | |
في الأعالي ..... الغيوم الرائعة . |
شارل بودلير / Charles Baudelaire >> الدعوة إلى السفر
(القصيدة)* | |
* | |
ولدي، أختي، | |
أحلمْ بطريقة لطيفة | |
أحلْم بأن نذهب إلى هناك،لنعيش جميعاً | |
ارغب في الراحة | |
أحب ومْت، | |
في البلد الذي يشبهك ! | |
شموُسه المبللة | |
من هذي السماوات الملبدة | |
من أجل روحي لها المفاتنُ | |
المكتنفة كثيرا بالأسرار | |
مفاتن عينيك الخائنتين، | |
تلمعان عبر دموعهما | |
هناك ... كل شيء ليس إلا نظاما وجمالا، | |
فخامة، هدوءا، واشتهاء حسيا. | |
. | |
سوف يزين غرفتنا، | |
أثاث متوهج، | |
صقلته السنون؛ | |
الزهور النادرة جدا | |
تمتزج أرائجها | |
بروائح العنبر الملتبسة | |
] وإذا لقيت، هناك، لقيت [ السقوف الباذخة | |
والمرايا العميقة، | |
والتألق الشرقي، | |
كل شيء سوف يتحدث هناك. | |
إلى النفس سرا | |
لغة مسقط رأسه العذبة. | |
. | |
هناك ... كل شيء ليس إلا نظاما وجمالا، | |
فخامة، هدوءا واشتهاء حسيا. | |
أطلي على هذه القنوات | |
حيث تنام هذه البوارج | |
مزاجها شارد؛ | |
ومهما تبحر من أقصى العالم | |
فلكي تشبع أقل رغبتك | |
- الشموس الراقدة | |
تكسو الحقول، | |
والقنوات، والمدينة كاملة، | |
بالياقوت الأحمر وبالذهب؛ | |
وينام العالم | |
في ضوء ساخن | |
هناك ... كل شيء ليس إلا نظاما وجمالا، | |
فخامة، هدوءا واشتهاء حسيا. | |
* | |
ترجمة : محمد الإحسايني | |
نشر بودلير، "الدعوة إلى السفر"، ثلاث مرات (1857، 1861، 1862) وهنا القصيدة. | |
Baudelaire les Fleurs du Mal. Spleen de Paris et Idéal* | |
(l’Invitation au voyage) p.p 136, 138 |
شارل بودلير / Charles Baudelaire >> القارورة
ظلت تنام، | |
ألف بنات أفكار | |
في خدر حزين | |
ترتعش بهدوء | |
في الظلمات الكثيفة | |
التي تنفض جناحها وتنطلق | |
مموهة باللازورد، | |
مصقولة بالورد، | |
مزركشة بالذهب | |
ها هي الذكرى النشوى التي تختلج | |
في الهواء المضطرب؛ تنغلق عيناي؛ | |
يأخذ الدوار نفسي المنهزمة ويدفعها بيدين اثنتين | |
عبر هوة مظلمة من الأبخرة الإنسانية العفنة، | |
. | |
كذلك عندما أصبح تائها في الذاكرة | |
عندما ُأرى مرميا في زاوية مرآة مشؤومة، | |
هناك رجال، أيتها القارورة الشائخة المحزونة، | |
الفانية المغبرة، القذرة، الخسيسة، اللزجة، المشقوقة | |
. | |
سأصبح نعشك أيتها النتانة الودود | |
شاهد قوتك وشدتك | |
عزيزي السم الذي يضنيني، يا حياة وموت قلبي ! | |
* | |
(القارورة) "أزهار الشر" شارل بودلير | |
ترجمة محمد الإحساين |
شارل بودلير / Charles Baudelaire >> الشاعر والطائر
كثيراً ما يمسك بحّارة السّفن، وهم يلهون، | |
بعض طيور "القوطرس"، تلك الطيور البحرية الضخمة، | |
التي تتبع السفن ماخرة العباب، وترافقها محلّقة بخمول، | |
ولا يكاد البحّارة يضعونها على ظهر السفينة، | |
حتّى تترك هذه الطيور، التي كانت ملوك الأجواء، | |
أجنحتها الكبيرة تتدلى كالمجاذيف وتزحف على جانبيها، | |
هذه الطيور المهاجرة، كم تبدو عند ذلك، | |
ضعيفة وفاقدة الحيلة، | |
هي التي كانت في الجوّ، ساحرة الجمال، | |
لكم أصبحت مضحكة وقبيحة يلهو بها البحّارة، | |
هذا بمشربه، وذاك بتقليده الطائر العاجز عن الطيران. | |
وأنت، أيها الشّاعر، مثلك في ذلك مثل أمير الأجواء، هذا | |
الذي يتحدّى العاصفة في الجوّ ويهزأ بالصيّاد، | |
ولكنّه عندما يقع على الأرض، منفيّاً، | |
تعيق ذلك العملاق أجنحته الضخمة، | |
وتمنعه من المشي. |
شارل بودلير / Charles Baudelaire >> الإنسان والبحر
أيها الإنسان الحرّ، سيظلّ البحر عزيزاً على قلبك، | |
البحر مرآتك، تتأمّل بإعجاب روحك في تموّجاته الأبدية. | |
ونفسك ليست أقلّ عمقاً من أغواره. | |
يحلو لك أن تغوص في أحضان صورتك، | |
وتعانقها بعينيك وبذراعيك، بينما يلهو قلبك أحيانا | |
عن أهوائه، بالاستماع إلى صخب وهدير أمواج البحر، العاتية، | |
أنتما الاثنين، غامضان ومتكتّمان. | |
أيها الإنسان، لم يستطع أحد سبر خفايا نفسك. | |
أيها البحر، لا يعرف أحد كنوزك الخفيّة، | |
لشدة حرصكما، على كتمان أسراركما. | |
ومع ذلك، فقد مرّت قرون لا تحصى، | |
وأنتما تتصارعان، دون ندم ولا شفقة، | |
لفرط ما تحبّان المجازر والموت. | |
فيالكما من متصارعين أبديين، أيها الأخوان المصرّان على الشراسة والعناد. |
شارل بودلير / Charles Baudelaire >> إلى عابرة
الشارع الصاخب كان من حولي يعوي | |
وعبرت امرأة، طويلة، نحيلة، | |
ترفل في الحداد، والألم المهيب، وبيد باذخة ترفع، | |
وتوازن الأكليل والهدب؛ | |
. | |
رشيقة ونبيلة، لها ساق تمثال. | |
وأنا، في عينيها، في السماء الداكنة حيث هب الاعصار | |
كنت أشرب متشنّجاً كممسوس | |
العذوبة التي تفتن، واللذة التي تقتل | |
. | |
وميض... ثم الليل! – أيها الجمال الهارب | |
بنظرته التي جعلتني أولد من جديد | |
هل أراك بعدُ إلا في الأبدية؟ | |
في مكان آخر، بعيداً جدّاً! بعد فوات الأوان! وربما أبداً فأنا لا أدري أين هربت، وأنت تجهل أين مضت بي قدماي، أنت الذي أحببته، وكنت تعرف هذا. | |
* | |
ترجمة: أحمد عبدالمعطي حجازي / منشورات الخازندر |
شارل بودلير / Charles Baudelaire >> الباطروس
لكي يزجون أوقات فراغهم يتلهى رجال البحر | |
بطيور الباطروس تلك المخلوقات البحرية الضخمة | |
المرافقة الكسولة لجوابي البحار | |
حينما تشق سفنهم عباب البحر وأجاج الملح... | |
وما أن تحط قدميها على سطح سفينة | |
حتى تجر ملوك للآفاق هذى | |
في رعونة تدعو للرثاء... | |
أجنحتها الضخمة البيضاء... | |
كما تنجر المجاذيف على جانبي قارب. | |
. | |
ياله من أخرق وضعيف هذا المسافر المجنح ... | |
لقد كان قبل وقت وجيز يكسوه البهاء... | |
وهو الآن قبيح ومثير للضحك وللرثاء. | |
أحدهم يمعن في مضايقته بمداعباته السخيفة المؤذية... | |
والآخر يومىء إليه ويتبعه هازئا من عجزه المهيض... | |
. | |
إن الشاعر شبيه بأمير الآفاق هذا... | |
يرتاد العواصف ويهزأ من نبل الصياد ... | |
منفي في الأرض... | |
وبين الساخرين الأوغاد ... | |
يعوق خطاه ثقل جناحيه الضخمين المجرورين | |
* | |
ترجمة : الدكتور عمر عبد الماجد |
شارل بودلير / Charles Baudelaire >> الملاح المحنك
يا موت !.. أيها الملاح المحنك ، | |
الموكل بسفر الأرواح ، | |
آن الأوان فأرفع المراسي، | |
وهيئ لنا الرحيل | |
مللنا المقام هنا – يا موت! .. | |
فعجل الرواح | |
وإن يكن –أيها الملاح!– | |
قد أدلهم | |
أمامك البحر والسماء | |
فإن نفوسنا التي ألمت بها – | |
يشع منها الضياء. |
شارل بودلير / Charles Baudelaire >> الشبح
LE REVENANT | |
* | |
كالملائكة ذات العيون الوحشية | |
سأعود إلى مخدعك | |
وأتسلل إليك بغير جلبة مع ظلام الليل | |
وسأمنحك يا سمرائي | |
قبلاً باردة كالقمر | |
ومداعبات أفعوان يسعى حول وكره | |
وعندما يعود الصباح الكئيب | |
ستجدين مكاني فارغاً وسيستمر بارداً حتى المساء | |
وكما يحب بعضهم أن يسيطروا | |
بالحب على حياتك وشبابك | |
أنا أريد أن أسيطر بالرعب | |
* | |
ترجمها عن الفرنسية | |
حنّا الطيّار | |
جورجيت الطيّار |
السبت، 23 أكتوبر 2010
وليم شكسبير / William Shakespeare >> سونيت 154
كان إله الحب الصغير مستلقيا ذات يوم وقد غلبه النوم، | |
وكانت إلى جانبه شعلته التي تضرم نار الهوى في القلوب، | |
بينما كثير من الحوريات اللاتي أقسمن على الاحتفاظ بحياتهن الطاهرة | |
يعبرن في قدومهن من جانبه، لكن اليد العذرءا | |
. | |
لأجمل واحدة منهن، التقطت تلك الشعلة | |
التي عقدت بالدفء كثيرا من روابط القلوب المخلصة؛ | |
هكذا كان أمير الرغبات الساخنة | |
مستغرقا في النوم عندما جردته اليد العذراء من سلاحه. | |
. | |
وأطفأتْ تلك الشعلة في أحد الآبار الباردة المجاورة، | |
فاتخذ البئر من نار الحب حرارة أبدية، | |
وصار حماماً ونبعاً شافياً | |
للبشر المصابين. ولما كنت عبدا لحبيبتي، | |
. | |
فقد ذهبت هناك أطلب الشفاء، وهذه هي الحقيقة التي وجدتها: | |
نار الحب تجعل الماء ساخنا، لكن الماء لا يجعل الحب باردا. | |
* | |
ترجمة: بدر توفيق | |
CLIV | |
The little Love-god lying once asleep, | |
Laid by his side his heart-inflaming brand, | |
Whilst many nymphs that vowed chaste life to keep | |
Came tripping by; but in her maiden hand | |
The fairest votary took up that fire | |
Which many legions of true hearts had warmed; | |
And so the General of hot desire | |
Was, sleeping, by a virgin hand disarmed. | |
This brand she quenched in a cool well by, | |
Which from Love's fire took heat perpetual, | |
Growing a bath and healthful remedy, | |
For men diseased; but I, my mistress' thrall, | |
Came there for cure and this by that I prove, | |
Love's fire heats water, water cools not love |
وليم شكسبير / William Shakespeare >> سونيت 153
رَكَنَ كوبيد شعلته الغرامية إلى جواره وراح في سبات عميق: | |
ورأت إحدى عرائس ديانا في هذا الوضع فرصتها المواتية | |
فاستلبته ناره التي تضرم الحب، وأسرعت بغمسها | |
في ماء الينبوع البارد الذي يتدفق في الوادي بتلك البقعة من الأرض؛ | |
. | |
اقتبس الينبوع من نار الحب المقدسة، التي حملتها الشعلة | |
حرارة الوجود وحيويته اللانهائية، التي مازالت باقية للآن، | |
أصبح النبع ساخنا، يستحم الناس فيه حتى يومنا هذا | |
ملتمسين العلاج الفعال ضد الأمراض الغريبة | |
. | |
لكن شعلة الحب اتقدت مجددا بالنار، عندما نظرت محبوبتي إليها، | |
ومن باب التجربة لمس كيوبيد صدري؛ | |
فإذا بي، وقد صرت عليلا، أَنْشُدُ العون في النبع الشافي | |
واتجهت خطاي إلى هناك، ضيفاً حزيناً محموماً، | |
. | |
لكنني لم أجد هناك أيّ شفاء: فالنبع الذي يمكن أن يسعفني | |
يوجد حيث حصل كيوبيد على النار الجديدة، عينا حبيبتي | |
* | |
ترجمة: بدر توفيق | |
CLIII | |
Cupid laid by his brand and fell asleep: | |
A maid of Dian's this advantage found, | |
And his love-kindling fire did quickly steep | |
In a cold valley-fountain of that ground; | |
Which borrowed from this holy fire of Love, | |
A dateless lively heat, still to endure, | |
And grew a seething bath, which yet men prove | |
Against strange maladies a sovereign cure. | |
But at my mistress' eye Love's brand new-fired, | |
The boy for trial needs would touch my breast; | |
I, sick withal, the help of bath desired, | |
And thither hied, a sad distempered guest, | |
But found no cure, the bath for my help lies | |
Where Cupid got new fire; my mistress' eyes |
وليم شكسبير / William Shakespeare >> سونيت 152
تعرفين أنني من أجل حبك خنت عهود زواجي، | |
أما أنت فخائنة مرتين، إذ تقسمين بحبك لي؛ | |
فأنت تنكثين بعهد زواجك، كما تمزقين عهدك الجديد بالاخلاص | |
عندما تؤكدين كرهك لي بعد اندفاعنا للحب من جديد. | |
. | |
ولكن لماذا أدينك لأنك تحنثين بالقسم مرتين | |
بينما حنثت أنا عشرين مرة؟ إني أنا الأكثر خيانة للعهد، | |
لأن كل ما أقسمت به لم يكن إلا خداعاً لك. | |
وكل إيماني الصادق بك صار ضائعاً؛ | |
. | |
لأنني أقسمت اليمين العظمى بحنانك العميق، | |
أقسمت بحبك، أقسمت بصدقك، أقسمت بوفائك؛ | |
ولكي أجعلك الضوء المشع، أسلمت عيني للعمى، | |
كيلا تقسمان بشيء عكس ما ترى؛ | |
. | |
لأنني أقسمت أنك أنت الجميلة: لشد ما أنا كاذب سفيه، | |
إذ أقسم ضد الحقيقة، بهذا الكذب الكريه. | |
* | |
ترجمة: بدر توفيق | |
CLII | |
In loving thee thou know'st I am forsworn, | |
But thou art twice forsworn, to me love swearing; | |
In act thy bed-vow broke, and new faith torn, | |
In vowing new hate after new love bearing: | |
But why of two oaths' breach do I accuse thee, | |
When I break twenty? I am perjured most; | |
For all my vows are oaths but to misuse thee, | |
And all my honest faith in thee is lost: | |
For I have sworn deep oaths of thy deep kindness, | |
Oaths of thy love, thy truth, thy constancy; | |
And, to enlighten thee, gave eyes to blindness, | |
Or made them swear against the thing they see; | |
For I have sworn thee fair; more perjured eye, | |
To swear against the truth so foul a lie |
وليم شكسبير / William Shakespeare >> سونيت 151
الحب صغير جدا على معرفة معنى الوعي | |
ومع هذا، فمن ذا الذي لا يعرف أن الوعي وليد الحب؟ | |
لا تحشدي التهم ضدي، إذن، أيتها المخادعة الرقيقة | |
كيلا يثبت أن المدان في أخطائي هو ذاتك الجميلة. | |
. | |
لأنك، عندما تخدعينني، فإنني أخدعُ | |
أكثر أعضائي نبلا بالخيانة العظمى لجسدي بأكمله؛ | |
تقول روحي لجسدي إن الواجب عليه | |
أن ينتصر في الحب، والجسد لا ينتظر مزيدا من التعليل، | |
. | |
لكنه يهب فور ما يطرح اسمك ويشير إليك بالتحديد | |
لأنك أنت غُنْم انتظاره، منفوشاً بهذي الكبرياء، | |
وهو مقتنع بأن يكون البائس الكادح من أجلك، | |
منتصبا في شئونك، مُنْطرحاً إلى جانبك. | |
. | |
لا تعتبروني لست واعيا بما فيه الكفاية حين أدعوها "حبيبتي" | |
تلك التي في حبها الغالي أسمو وأسقط. | |
* | |
ترجمة: بدر توفيق | |
CLI | |
Love is too young to know what conscience is, | |
Yet who knows not conscience is born of love? | |
Then, gentle cheater, urge not my amiss, | |
Lest guilty of my faults thy sweet self prove: | |
For, thou betraying me, I do betray | |
My nobler part to my gross body's treason; | |
My soul doth tell my body that he may | |
Triumph in love; flesh stays no farther reason, | |
But rising at thy name doth point out thee, | |
As his triumphant prize. Proud of this pride, | |
He is contented thy poor drudge to be, | |
To stand in thy affairs, fall by thy side. | |
No want of conscience hold it that I call | |
Her love, for whose dear love I rise and fall |
وليم شكسبير / William Shakespeare >> سونيت 150
من أي طاقة خفية ملكت هذي السلطة القوية | |
لتحكمي قلبي بما فيك من نقصان؟ | |
ولتجعليني أُكذّبُ ما أراه في الحقيقة | |
وأقسم أن الضوء لا يُجَمِّلُ النهار؟ | |
. | |
كيف تأتت لك قدرة إضفاء الحسن على الأشياء السقيمة، | |
ففي أشد حالات الرفض لما تفعلين | |
هناك نوع من القوة وضمانة من المهارة | |
تجعلني أرى أسوأ ما لديك يفوق أعظم شيء سواه؟ | |
. | |
من الذي علمك الوسيلة التي تجعلني أزداد حباً لك | |
كلما زاد ما أسمعه وما أراه من الأسباب التي تدعو إلى كراهيتك؟ | |
آه، رغم أنني أحب ما يكرهه الآخرون، | |
عليك ألا تكرهيني مثلما هم يفعلون. | |
. | |
إذا كانت تفاهتك هي التي دفعتني إلى حبك، | |
فما أشد جدارتي لأكون محظياً بغرامك! | |
* | |
ترجمة: بدر توفيق | |
CL | |
O! from what power hast thou this powerful might, | |
With insufficiency my heart to sway? | |
To make me give the lie to my true sight, | |
And swear that brightness doth not grace the day? | |
Whence hast thou this becoming of things ill, | |
That in the very refuse of thy deeds | |
There is such strength and warrantise of skill, | |
That, in my mind, thy worst all best exceeds? | |
Who taught thee how to make me love thee more, | |
The more I hear and see just cause of hate? | |
O! though I love what others do abhor, | |
With others thou shouldst not abhor my state: | |
If thy unworthiness raised love in me, | |
More worthy I to be beloved of thee |
وليم شكسبير / William Shakespeare >> سونيت 149
هل تستطيعين القول، أيتها القاسية، أنني لا أحبك | |
حين أكون ضد نفسي منحازاً إلى جانبك؟ | |
ألم أكن أفكر فيك، عندما نسيتُ | |
كل شيء يخصني تماماً، من أجلك أنت؟ | |
. | |
من ذا الذي يكرهك وأدعوه رغم هذا صديقي؟ | |
وهل أتودد إلى من تقطبين في وجهه؟ | |
لا، فلو قطبت بوجهي أنا، أفلا أعمل | |
على الانتقام من نفسي بما أعانيه الآن؟ | |
. | |
ما هي الفضيلة التي أحترمها في نفسي | |
والتي تعتز بنفسها إلى درجة الترفع عن خدمتك | |
بينما أفضل ما عندي يُقدس نقائصك | |
مُسَيراً بالإشارة التي تصدر من عينيك؟ | |
. | |
واصلي إذن، أيتها الحبيبة، كرهك لي، لأني أعرف الآن أفكارك | |
أنت تحبين أولئك الذين يستطيعون الرؤية، وأنا رجل أعمى. | |
* | |
ترجمة: بدر توفيق | |
CXLIX | |
Canst thou, O cruel! say I love thee not, | |
When I against myself with thee partake? | |
Do I not think on thee, when I forgot | |
Am of my self, all tyrant, for thy sake? | |
Who hateth thee that I do call my friend, | |
On whom frown'st thou that I do fawn upon, | |
Nay, if thou lour'st on me, do I not spend | |
Revenge upon myself with present moan? | |
What merit do I in my self respect, | |
That is so proud thy service to despise, | |
When all my best doth worship thy defect, | |
Commanded by the motion of thine eyes? | |
But, love, hate on, for now I know thy mind, | |
Those that can see thou lov'st, and I am blind |
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