لا تقل عن قلبي أبداً أنه لم يكن لك مخلصا | |
رغم أن الغياب أظهرني في شكل من خبا حبه لك؟ | |
ينبغي عندئذ أن أفترق عن نفسي بسهولة | |
مثل سهولة افتراقي عن روحي التي تقيم بين ضلوعك | |
. | |
ذلك هو منزل حبي: لو كنت قد تجولت، | |
مثل ذلك الذي يسافر فإنني أعود ثانيا | |
في وقت العودة المنتظر، دون أن يغيرني الزمن | |
حتى أحضر الماء بنفسي لأغسل الوصمة التي لحقت بي. | |
. | |
لا تصدق، رغم طبيعتي التي تتحكم فيها | |
جميع نقاط الضعف التي تحاصر نواحي بدني كلها | |
وتستطيع أن تلطخها جميعا بما ينافي الطبيعة | |
أن أتنازل عن كل ما لديك من الخير بلا مقابل. | |
. | |
إني أرى هذا الكون الفسيح لا يساوي شيئاً | |
فيما عداك، يا وردتي، فأنت كل شيء لي فيه. | |
* | |
ترجمة: بدر توفيق | |
CIX | |
O! never say that I was false of heart, | |
Though absence seem'd my flame to qualify, | |
As easy might I from my self depart | |
As from my soul which in thy breast doth lie: | |
That is my home of love: if I have ranged, | |
Like him that travels, I return again; | |
Just to the time, not with the time exchanged, | |
So that myself bring water for my stain. | |
Never believe though in my nature reigned, | |
All frailties that besiege all kinds of blood, | |
That it could so preposterously be stained, | |
To leave for nothing all thy sum of good; | |
For nothing this wide universe I call, | |
Save thou, my rose, in it thou art my all |
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احساس مجروح
السبت، 23 أكتوبر 2010
وليم شكسبير / William Shakespeare >> سونيت 109
مرسلة بواسطة
فرسان
في
1:32 م
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