تؤنسني الآن قسوتك السابقة معي، | |
وبسبب ذلك الألم الذي عانيته وقتئذ | |
لا بد أن أنحني تحت وطأة قسوتي الآن عليك، | |
ما لم تكن أعصابي من النحاس أو الصلب المطروق. | |
. | |
فلو كنتَ من قسوتي قد عانيت، | |
مثلما عانيت أنا من قسوتك، فإنك تكون عشت زمنا في الجحيم، | |
وأكون أنا كالمستبد، لم أتخذ لنفسي فسحة من الوقت | |
لأقدر حجم الآلام التي قاسيتُها من جريمتك. | |
. | |
آه من عذابنا في الليل، إنه يذكرني | |
بقسوة الألم الصادق حين يضرب في عمق أعماق مشاعري، | |
لكنني عندئذ سرعان ما أقدم إليك نفس الشيء الذي تقدمه لي | |
إنه الاعتذار المتواضع الذي يناسب الأرواح الجريحة! | |
. | |
ومادامت خطيئتك الآن أصبحت عقابا واجب السداد، | |
فإن خطيئتي تغفر خطأك، وخطيئتك لا بد أن تغفر خطأي. | |
* | |
ترجمة: بدر توفيق | |
CXX | |
That you were once unkind befriends me now, | |
And for that sorrow, which I then did feel, | |
Needs must I under my transgression bow, | |
Unless my nerves were brass or hammer'd steel. | |
For if you were by my unkindness shaken, | |
As I by yours, you've passed a hell of time; | |
And I, a tyrant, have no leisure taken | |
To weigh how once I suffered in your crime. | |
O! that our night of woe might have remembered | |
My deepest sense, how hard true sorrow hits, | |
And soon to you, as you to me, then tendered | |
The humble salve, which wounded bosoms fits! | |
But that your trespass now becomes a fee; | |
Mine ransoms yours, and yours must ransom me |
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احساس مجروح
السبت، 23 أكتوبر 2010
وليم شكسبير / William Shakespeare >> سونيت 120
مرسلة بواسطة
فرسان
في
1:53 م
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